अगर छुपी बैठी हो
शर्म की चादर लपेट कर ।
और झिझक रही हो यह सोच कर
बात करोगी
तो बेशर्मी होगी ।
अलफ़ाज़ जो बह गए
उम्मीद के इंतज़ार मे
उनको सन्नाटों में
डूबने से न बचाया
तो बेशर्मी होगी ।
नज़रें जो उठी नहीं
इशारों के बहकाने से
उनको आगोश में
ना सुलाया
तो बेशर्मी होगी ।
हाथ जो कांपते हैं
छूने की याद में तन्हा
उनको तन्हाई मे
गले ना लगाया
तो बेशर्मी होगी ।
शर्म की चादर लपेट कर ।
और झिझक रही हो यह सोच कर
बात करोगी
तो बेशर्मी होगी ।
अलफ़ाज़ जो बह गए
उम्मीद के इंतज़ार मे
उनको सन्नाटों में
डूबने से न बचाया
तो बेशर्मी होगी ।
नज़रें जो उठी नहीं
इशारों के बहकाने से
उनको आगोश में
ना सुलाया
तो बेशर्मी होगी ।
हाथ जो कांपते हैं
छूने की याद में तन्हा
उनको तन्हाई मे
गले ना लगाया
तो बेशर्मी होगी ।